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अंतरराष्‍ट्रीय वैज्ञानिक हिंदी संगोष्‍ठी -
‘स्वास्थ्य एवं पर्यावरण : वर्तमान चुनौतियाँ एवं भविष्य की संभावनाएं

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वर्ष 2023 अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज (मिलेट्स) के वर्ष के रूप में मनाया गया जिसे भारत के निरंतर प्रयासों से आगे बढ़ाया जा रहा है। मोटे अनाज की अपार क्षमता को समझते हुए जो जलवायु अनुकूल, पौष्टिक और कम जल खपत वाली फसलों के रूप में संयुक्त राष्ट्र के कई सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है, भारत सरकार मोटे अनाज को प्राथमिकता दे रही है। मोटे अनाज उच्च पोषकता, छोटे और सीमांत किसानों के आर्थिक सशक्तीकरण की क्षमता और पृथ्वी की जैव विविधता को बनाए रखने व पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपार क्षमता के कारण महत्वपूर्ण है। पिछले 25 वर्षों में प्रौद्योगिकी की तेज़ रफ्तार और असाधारण विस्तार से मानव जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है । मौजूदा समय में प्रौद्योगिकी कोई विकल्प नहीं रह गयी है। भारत इस प्रौद्योगिकी को आगे ले जाने के लिए अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ सहयोग कर रहा है। यह दिलचस्प समय है जब हम प्रौद्योगिकी विकास और मौजूदा प्रौद्योगिकी में नवाचार के चौराहे पर हैं। स्पष्ट तौर पर यह 'प्रौद्योगिकी - दशक' स्थाई होगा। अतीत, वर्तमान और भविष्य के जलवायु परिवर्तन से होने वाले जोखिम को पर्याप्त रूप से कम करने के लिहाज से मौजूदा अनुकूलन प्रयास कमजोर हैं। इन प्रयासों से, उन लोगों को फायदा नहीं हो रहा है जो जलवायु प्रभावों के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं, विशेष रूप से वे लोग जो जलवायु प्रभावों के संपर्क में आ चुके हैं। मनुष्य को छोड़कर शेष घटक प्रकृति के अनुसार संचालित होते हैं। सिर्फ मनुष्य अपनी गतिविधियों से पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण को प्रभावित करता है। ये मानवजनित गतिविधियां संकटदायक और आत्मघाती हैं। अपनी आदतों में बदलाव के जरिये हम स्वयं के साथ अपनी भावी पीढ़ियों के लिए यह पृथ्वी जीवनयोग्य बनाए रख सकते हैं। विश्व में पानी की अपार उपलब्धता है किन्तु उपयोगी पानी की मात्रा केवल तीन प्रतिशत है। इस तीन प्रतिशत के मात्र 11 प्रतिशत भाग का हम भूजल के रूप में उपयोग कर सकते हैं। वर्तमान परिदृश्य के इसी भूजल दायरे को हम उपयुक्त जल प्रबन्धन से बढ़ा सकते हैं तथा बदलते परिवेश में भी जल की कमी से निजात पा सकते हैं । जल की कमी का एक मुख्य कारण कृषि, उद्योग और घरों जैसे विभिन्न क्षेत्रों द्वारा जल का अत्यधिक एवं अकुशल उपयोग है। एआई और रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर जल की खपत का अधिक प्रभावी ढंग से मापन और इसका प्रबंधन किया जा सकता है।

विगत में सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्‍थान, लखनऊ ने जन-सामान्‍य से जुड़े विषयों पर हिंदी में पाँच राष्‍ट्रीय और दो अंतरराष्‍ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्‍ठी का आयोजन किया है। सीएसआईआर-आईआईटीआर ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और उद्योगों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं । साथ ही, सीएसआईआर-आईआईटीआर स्थानीय भाषा में ज्ञान प्रसार और हिंदी (राजभाषा) के प्रसार के लिए अच्छी तरह से पहचाना जाता है। सीएसआईआर-आईआईटीआर ने भारत सरकार के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार ‘राजभाषा कीर्ति पुरस्कार’ के अंतर्गत हिंदी पत्रिका “विषविज्ञान संदेश” के लिए द्वितीय पुरस्कार प्राप्त किया है। संस्‍थान का वार्षिक प्रतिवेदन विगत कई वर्षों से द्विभाषी (हिंदी और अंग्रेजी अलग-अलग ) प्रकाशित किया जा रहा है। संस्‍थान में नियमित रूप से वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में आमंत्रित व्‍याख्‍यान आयोजित किया जाता है। देश और राष्ट्रीय मिशन कार्यक्रम की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सीएसआईआर-आईआईटीआर की टीम 'स्वस्थ भारत' और 'स्वच्छ भारत' मिशन के तहत समाज के लिए योगदान करने के सभी प्रयास कर रही है। जन-सामान्य से जुड़े समकालीन विषयों को समाहित कर संस्थान में संदर्भित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।